आज जब मैं प्रपंच चबूतरे पर पहुंचा, तब चतुरी चाचा बड़के दद्दा और ककुवा के साथ चोंच लड़ा रहे थे। तीनों बड़ी गम्भीरता से कोरोना संकट और मजबूर मज़दूरों के पलायन पर बातें कर रहे थे। मैंने प्रपंच चबूतरे के नियमानुसार साबुन से हाथ-पैर धोए। फिर एक कुर्सी पकड़ ली। दरअसल, चतुरी चाचा प्रपंच चबूतरे पर साफ-सफाई, दो गज की दूरी और मॉस्क आदि का पालन बड़ी कड़ाई से करवाते हैं। चाचा के जागरूकता अभियान के कारण गाँव में सभी लोग समय-समय पर साबुन से हाथ धोते रहते हैं। साथ ही, लोग एक दूसरे से दो गज की दूरी रखते हैं। ज्यादातर सब लोग अपने घरों में ही रहते हैं। घर से कदम बाहर निकालते ही चेहरे पर मॉस्क लगा लेते हैं। कुछ लोग मॉस्क की जगह गमछे का इस्तेमाल करते हैं।
चतुरी चाचा ने कहा, लोकतंत्र हो या राजतंत्र जनता का खून बहना शासक के लिए नुकसानदेह ही साबित होता है। सत्ताधारी नेताओं को सोचना चाहिए कि आज पदयात्रा के कारण जिन मजदूरों के तलवे खून से लथपथ हैं। जो सपरिवार रात-दिन भूखे-प्यासे सैकड़ों किमी की पदयात्रा करने पर मजबूर हैं। जो रेलवे ट्रैक और हाइवे पर बेमौत मर रहे हैं। निकट भविष्य में यही मजदूर एवीएम मशीन का बटन फिर दबाएंगे। इन्हीं गरीबों के पास ही सत्ता की चाबी रहेगी। रेल की पटरियों पर हो या फिर सड़कों पर हो। गरीब का खून बहना दोनों जगह बेहद दर्दनाक और शर्मनाक है।
बड़के दद्दा ने कहा, आजकल यही लग रहा है कि जैसे कि भारत देश फुटबॉल का विराट मैदान है। मजदूर फुटबॉल की तरह इधर से उधर ठोकर खा रहा है। इसमें केंद्र सरकार रेफरी व राज्य सरकारें खिलाड़ी नजर आ रही हैं। मजदूरों के पलायन पर कोई भी सरकार अपनी जवाबदेही स्वीकार नहीं कर रही है। यह त्रासदी कुछ राज्य सरकारों की लापरवाही और संवेदनाहीनता के कारण आयी है। देश की अफसरशाही इस दाद में खाज की तरह है। कुलमिलाकर मोदी जी और योगी जी के अनन्त सत्प्रयासों पर पानी फिर रहा है।
हमने कहा, केंद्र सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को चलाया है। उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों ने मजदूरों के लिए कुछ बसें भी चलाई हैं। परंतु, कुछ राज्यों ने घोर लापरवाही दिखाई है, जिससे हर तरफ मजदूर सड़क पर दिखाई दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने कल शाम लखनऊ की सभी सीमाएं सील करवा दीं। दरअसल, विभिन्न राज्यों से पलायन कर रहे हजारों मजदूर लखनऊ शहर के अंदर से गुजर रहे थे। इसी दौरान पच्छे टोला से मुंशीजी और कासिम चचा की जोड़ी आ गयी। दोनों जन हाथ-पैर धोने लगे, तभी चंदू बिटिया गिलोय का काढ़ा लेकर आ गयी। गिलोय के कड़वे काढ़े के साथ गुनगुना नींबू-पानी भी था। सबने पहले नींबू-पानी पीया, फिर गुरच का काढ़ा उठाया। हमेशा की तरह चंदू बिटिया चबूतरे से थोड़ी दूर पर रखी एक कुर्सी पर ट्रे रख कर फुर्र हो गयी थी। ककुवा ने कुल्हड़ मुंह लगाया और काढ़े एक चुस्की ली। फिर मुंह बनाकर बोले- चतुरी भाई कौने जनम का बदला लय रहे हौ। यूह काढ़ा आय की जहर आय। आजु तौ बहुतय तीत हय भाय। कासिम मास्टर बोले, यह गिलोय यशपाल प्रधान ने अपने गाँव के जंगल से कटवाकर भेजी है। यह गुरच नीम पर चढ़ी होने के कारण से कुछ ज्यादा कड़वी है। वैसे नीम वाली गिलोय लाभकारी ज्यादा मानी जाती है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए गिलोय रोज पीना चाहिए।
चतुरी चाचा ने हमसे कहा-रिपोर्टर, जरा बृजेश शुक्ला को वीडियो कॉल करो। उनसे मजदूरों के मुद्दे पर बात की जाए। हमने तुरंत वरिष्ठ पत्रकार श्री शुक्ल को वीडियो कॉल की। चाचा ने मजदूरों के सैकड़ों किमी पैदल चलने पर राज्य सरकारों की नियति पर सवाल खड़े किए। इस पर बृजेश शुक्ल ने कहा-बाहर से आ रहे मजदूरों के सामने दो बड़ी दिक्कतें हैं। एक तो लंबी और पैदल यात्रा करने की मजबूरी है। दूसरी चुनौती मजदूरों के अपने गांव पहुंचने पर खड़ी हो रही है। गांव के लोग उन्हें उनके घर आने पर ऐतराज कर रहे हैं। मजदूरों के दर्द की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। राज्य सरकारों को चाहिए था कि अपने-अपने क्षेत्र से पैदल आ रहे लोगों को राज्य की सीमा तक बसों से पहुंचाते। परन्तु, ऐसा क्यों नहीं हो रहा है, यह आश्चर्यजनक है। चाहे राजस्थान सरकार हो या महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश की सरकार हो या फिर छत्तीसगढ़ की सरकार हो। कोई भी राज्य सरकार यह व्यवस्था करने को तैयार नहीं है। दूसरी ओर जब प्रवासी मजदूर अपने गांव पहुंचते हैं तो गांव वाले नहीं चाहते कि यह घर गांव में प्रवेश करें। गांव में भी कड़ी घेराबंदी है। उन्हें लगता है कि कहीं यह कोरोना बीमारी तो नहीं ले आए हैं। पिछले सप्ताह मैंने महोबा के रामकुंड सहित कई घटनाएं लिखी थीं। उसमें गांव वालों ने बाहर से आने वालों को घुसने तक नहीं दिया था। रात में पुलिस बुलाकर हंगामा कर उन्हें बाहर भेजवा दिया था। परसों भी अखबारों में छपा था कि कैसे गांव के लोग संबंध नाते कुछ सुनना नहीं चाहते हैं। मजदूर न घर के हैं और न ही घाट के हैं।
फोन कटने के बाद मुंशीजी ने कहा- लॉकडाउन फिर बढ़ गया है। पर, इस बार नए रंग रूप का है। वैसे लखनऊ के समाजसेवी मजदूरों की सेवा में अहर्निश जुटे रहे। जब कभी कोरोना और लाखों मजदूरों के पलायन की बात चलेगी, तब लखनऊ के समाजसेवियों की भी चर्चा होगी। सभी प्रपंचियों ने इस पर अपनी सहमति जताई। इसी के साथ आज का प्रपंच समाप्त हो गया। मैं अब अगले इतवार को नए प्रपंच के साथ हाजिर रहूँगा। तबतक के लिए पँचव राम-राम!
रिपोर्ट-नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान